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स्कॉटलैंड में मिला उड़ने वाले डायनासोर का अवशेष

जुल्फिकार अबानी
९ फ़रवरी २०२४

डायनासोर के समूह का पंखों वाली यह प्रजाति 16 करोड़ वर्ष पहले इस धरती पर रहती थी. उसके अवशेष आम तौर पर स्कॉटलैंड में नहीं, बल्कि चीन में पाए जाते हैं. स्कॉटलैंड में मिले अवशेष से इस प्रजाति के बारे में नई जानकारी मिली है.

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उड़ने वाले डायनासोर टेरोसोर की संरचना
जीवाश्म के रूप में मिले अस्थियों के टुकड़ों को देख कर वैज्ञानिकों ने टेरोसोर की यह संरचना तैयार की है

जीवाश्म विज्ञानियों ने पहली बार 2006 में स्कॉटलैंड में दक्षिण-पश्चिम तट आइल ऑफ स्काई की यात्रा के दौरान नए टेरोसोर सियोप्टेरा इवांसे की हड्डियों को देखा था. इसके बाद से वे लगातार इन जीवाश्मों को अध्ययन के लिए तैयार करने में लगे हुए थे. अधिकांश जीवाश्म उस चट्टान में फंसे हुए हैं जिसमें वे पाए गए थे. वैज्ञानिक बेहद सावधानी से उनकी सफाई कर रहे हैं, ताकि जीवाश्म को किसी तरह का नुकसान ना पहुंचे.

उड़ने वाले  विशाल डायनासोर का पता चला

इस खोज में कंकाल का सिर्फ एक हिस्सा मिला है. इसमें कंधे, पंख, पैर और रीढ़ की हड्डी शामिल है, लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि हड्डियां एक ही टेरोसोर की हैं. माना जाता है कि टेरोसोर डायनासोर और मगरमच्छ दोनों से जुड़े हुए थे. ऐसा लगता है कि आम तौर पर लंबी पूछ और उड़ने वाले ये छोटे सरीसृप कई तरह की नस्लों में विकसित हुए थे. जो मौजूदा कंकाल मिला है वह डार्विनोप्टेरा नाम के समूह से संबंधित है. 

जर्नल ऑफ वर्टेब्रेट पेलियोन्टोलॉजी में हाल में प्रकाशित रिसर्च रिपोर्ट में रिसर्चरों ने लिखा है कि टेरोसोर की पूरी तस्वीर बनाने में मुश्किल आ रही है, क्योंकि अब तक की खोज में जो कंकाल मिले हैं वे अलग-अलग टुकड़ों में बंटे हुए हैं.

टेरोसोर से जुड़े अन्य खोज की तुलना में ‘खास विशेषताएं'

रिसर्चरों के मुताबिक, यह मध्य जुरासिक युग के टेरोसोर का चौथा कंकाल है जिसकी खोज हुई है. प्राचीन समय में उड़ने वाले सरीसृप आम तौर पर पूर्वी एशिया से जुड़े हुए हैं. उन्होंने लिखा, "स्कॉटलैंड में सियोप्टेरा इवांसे की खोज से डार्विनोप्टेरा के रहने की जगह के बारे में ‘अहम और नई जानकारी' मिलती है.

चीन के एक म्यूजियम में टेरोसोर की पेंटिंग
ये भले ही उड़ने वाले डायनासोर जैसे दिखते हों लेकिन वास्तव में ये उनके रिश्ते के सरीसृप भाई बहन हैंतस्वीर: Cai Zengle/HPIC/dpa/picture alliance

जीवाश्मों को अध्ययन के लिए तैयार करने और उन्हें चट्टान में ही छोड़ने के बाद, शोधकर्ताओं ने माइक्रोकंप्यूटेड टोमोग्राफी और एक्स-रे की मदद से उन्हें स्कैन किया. इससे वैज्ञानिकों को टेरोसोर के फाइलोजेनेटिक्स को लेकर अनुमान लगाने में मदद मिली. फाइलोजेनेटिक्स की मदद से संबंधित जीवों के समूह की प्रजातियों के विकास और उनकी विविधता का अध्ययन किया जाता है.

अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने मुख्य रूप से पांच निष्कर्ष निकाले. इसमें पहला यह है कि सियोप्टेरा, डार्विनोप्टेरस की एक नई प्रजाति है. यह जीवाश्म उन अन्य जीवाश्मों से अलग दिखता था जिन्हें वैज्ञानिकों ने पाया था कि वे एक ही समूह के हैं. इसमें ऐसी कुछ बातें थीं जो दूसरों में नहीं थी. इस जीव की छाती और कंधे की हड्डी की संरचना अपने समूह के अन्य प्राणियों की तुलना में अनोखी थी. वैज्ञानिक इस भाग को ‘कोरैकॉइड का स्टर्नल भाग' कहते हैं. इसके कूल्हे और पैर एक विशेष तरीके से जुड़े हुए थे. इस वजह से यह जीव अपने समूह के अन्य प्राणियों के विपरीत, सीधा चल सकता था.

बड़ी बस के आकार का उड़ने वाला ड्रैगन

वैज्ञानिकों ने यह भी अनुमान लगाया कि सियोप्टेरा इवांसे करीब 2.5 करोड़ वर्ष तक इस पृथ्वी पर मौजूद था. पॉल बैरेट लंदन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के रिसर्चर हैं. साथ ही, वे इस जीवाश्म की खोज के बारे में लिखे गए रिसर्च रिपोर्ट के वरिष्ठ लेखक भी हैं. उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि स्कॉटलैंड में इस उड़ने वाले सरीसृप (‘सियोप्टेरा') का पाया जाना बहुत बड़ा आश्चर्य था. इसके अधिकांश करीबी रिश्तेदार आमतौर पर चीन में पाए जाते हैं, इसलिए इसे यूके में देखना पूरी तरह से अप्रत्याशित था.” बैरेट ने कहा, "इस खोज से पता चलता है कि इन उड़ने वाले सरीसृपों ने वैज्ञानिकों की सोच से कहीं पहले ही पृथ्वी के चारों ओर उड़ना शुरू कर दिया था और वे धरती पर लगभग हर जगह तेजी से फैल गए थे.”

टेरोसोर का जीवाश्म
टेरोसोर के ज्यादातर जीवाश्म चीन में ही मिलते आए हैं, पहली बार स्कॉटलैंड में जीवाश्म मिलने से वैज्ञानिक हैरान हैंतस्वीर: Sun Zifa/China News Service/MAXPPP/dpa/picture alliance

सियोप्टेरा इवांसे की खोज क्यों मायने रखती है?

उसी प्रेस विज्ञप्ति में एक अन्य प्रमुख लेखक लिज मार्टिन-सिल्वरस्टोन ने कहा कि सियोप्टेरा इवांसे, "टेरोसोर के विकास के सबसे महत्वपूर्ण कालखंडों में से एक के दौरान मौजूद था. हमारे पास उस काल के जीवाश्म काफी कम हैं. इसलिए, यह वैज्ञानिकों के लिए काफी महत्वपूर्ण है." ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में जीवाश्म विज्ञानी मार्टिन-सिल्वरस्टोन ने कहा कि इस जीवाश्म और उसके विश्लेषण से हमें यह समझने में ज्यादा मदद मिलेगी कि बेहतर प्रजाति वाले टेरोसोर कब और कहां विकसित हुए.

सियोप्टेरा इवांसे को इसके नाम का पहला हिस्सा स्कॉटिश गेलिक शब्द ‘सियो' से मिला है जिसका अर्थ है धुंध या कोहरा और लैटिन शब्द ‘टेरा' जिसका अर्थ है पंख. शोधकर्ताओं ने कहा कि नाम का दूसरा हिस्सा इवांसे ‘ब्रिटिश जीवाश्म विज्ञानी सुसान ई इवांस' के नाम से लिया गया है. उन्होंने कई वर्षों तक आइल ऑफ स्काई पर काम किया. साथ ही, वर्षों तक नई खोज में जुटे रहे. उनके नाम पर इस जीव का नामकरण किया गया है.

टेरोसोर करीब 6.6 करोड़ वर्ष पहले विलुप्त हो गए थे. डायनासोर भी लगभग उसी समय विलुप्त हुए थे. टेरोसोर की हड्डियां नाजुक थीं, इसलिए उनके जीवाश्म काफी कम पाए जाते हैं.